शेयर मार्केट के कंपनी का फंडामेंटल कैसे चेक करें?

लोग शेयर मार्केट से पैसा कमाते है, लेकिन कुछ लोग अपना पैसा डूबा देते है। क्यूंकि वे कंपनी का फंडामेंटल चेक नहीं करते।  जो लोग कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस करते है, वो पैसा कमाते है। कंपनी का फंडामेंटल पता करना कठिन नहीं है। यह 5 मिनट हो सकता है। लेकिन इसके लिए आपको आर्टिकल पूरा पढ़ना पड़ेगा। आर्टिकल में सब कुछ आसान और देशी भाषा में  बताया गया है। 

 

 

कंपनी का फंडामेंटल कैसे चेक करें?

जब इंटरनेट नहीं था, तो यह काम बहुत कठिन था। इसके लिए किसी एक्सपर्ट पर ही निर्भर रहना पड़ता था। आज यह काम 5 मिनट में हो जाता है। इसके लिए बस ब्रोकर App या वेबसाइट को लॉगिन करना पड़ता है। 

 

कंपनी का फंडामेंटल चेक करने के लिए आपको कुछ जरुरी चीजों पर ध्यान देना पड़ता है। यह जरुरी पॉइंट को नीचे दिया गया है:

  • इन्ट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic Value)
  • मार्केट कैपिटल (Market Capital)
  • PE रेश्यो 
  • इंडस्ट्री PE रेश्यो
  • बुक वैल्यू
  • PB रेश्यो
  • ROE रेश्यो  
  • डेब्ट तो इक्विटी रेश्यो 
  • डिविडेंट (Divident)
  • शेयर होल्डिंग पैटर्न (Shareholding Pattern)
  • बैलेंस शीट 
  • कॉम्पिटिटर 
  • फेस वैल्यू (Face Value)

 

अब एक-एक कर सबका मतलब जानते है। इसे निकालते कैसे है? यह भी उदहारण की मदद से समझेंगे।

 

कंपनी का फंडामेंटल कैसे चेक करें?


इन्ट्रिंसिक वैल्यू (Intrinsic Value)

कंपनी के शेयर की सही क़ीमत कितनी है? इसकी जानकारी हमें इन्ट्रिंसिक वैल्यू से होती है। यदि इन्ट्रिंसिक वैल्यू शेयर की कीमत से ज्यादा है, तो यह एक अच्छा शेयर माना जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते है:


आप एक बड़े रेस्टोरेंट में गए। ₹ 250 की एक मिठाई ख़रीदी। मिठाई का टेस्ट बहुत ख़राब था। आपने मिठाई चखते ही मिठाई फेंकने का फैसला किया। फिर बाजार के एक सामान्य दुकान से मिठाई ख़रीदी, जिसकी क़ीमत ₹25 थी। आपने इसे खाया और आपको मज़ा आ गया। 

 

अब आपको लगता है, रेस्टोरेंट वाले मिठाई की क़ीमत ₹10 और छोटे दुकान वाले मिठाई की क़ीमत ₹ 50 होनी चाहिए। इसी को इन्ट्रिंसिक वैल्यू कहते है। देशी भाषा में कहे तो यह शेयर की सच्ची औकात बताती है। 


मिठाई की जगह शेयर रख देने पर शेयर की क़ीमत ₹ 25 और इन्ट्रिंसिक वैल्यू ₹ 50 है। इसलिए इन्ट्रिंसिक वैल्यू शेयर की कीमत से ज्यादा हो तो अच्छा माना जाता है। 

 

 

मार्केट कैपिटल (Market Capital)

मार्केट कैपिटल को शार्ट में मार्केट कैप भी कहा जाता है। यह पूरा कंपनी का क़ीमत बताता है। यदि कोई पूरा कंपनी खरीदना चाहता है, तो उसे मार्केट कैपिटल के बराबर पैसा देना होगा। मार्केट कैपिटल निकलने का तरीक़ा:


कंपनी के एक शेयर की क़ीमत ❌ कंपनी के कुल शेयरों की संख्या = मार्केट कैपिटल 


कंपनी कितनी बड़ी है? यह मार्केट कैपिटल से पता चलता है। यदि आप रिस्क नहीं लेना चाहते है, तो हमेशा बड़े कैपिटल वाले शेयर का चुनाव करें। 



PE रेश्यो

एक रुपया (₹1) कमाने के लिए आपको कितना पैसा लगाना होगा? इसकी जानकारी आप PE रेश्यो देख कर बता सकते है। PE रेश्यो का मतलब शेयर प्राइस और एअर्निंग पर शेयर का अनुपात। 


₹ 20 से कम PE रेश्यो वाले शेयर को अच्छा माना जाता है, लेकिन हमें इंडस्ट्री PE रेश्यो भी देखना चाहिए। 



इंडस्ट्री PE रेश्यो

शेयर मार्केट में कई इंडस्ट्री है जैसे : फार्मा, आईटी, टेक्सटाइल, सीमेंट, ऑटोमोबाइल तथा अन्य। हर इंडस्ट्री का अपना PE रेश्यो होता है। 


अच्छा शेयर उसे कहते है जिसका PE रेश्यो, इंडस्ट्री PE रेश्यो से कम है। 



बुक वैल्यू (Book Value)

यदि आज कंपनी डूब जाए, तो आपको बुक वैल्यू के अनुसार पैसा वापस मिलेगा। बुक वैल्यू 50 रहे, तो आपको ₹ 50 मिलेगा। 


जिस शेयर का क़ीमत, बुक वैल्यू के सामान होता है वह सबसे अच्छा माना जाता है। यदि बुक वैल्यू की क़ीमत उस कंपनी के शेयर प्राइस से ज्यादा अंतर ना हो। 



PB रेश्यो 

यह शेयर की क़ीमत और बुक वैल्यू का अनुपात होता है। PB रेश्यो 1 या 1 के जितना आस-पास हो, उतना अच्छा माना जाता है। 2 से अधिक PB रेश्यो वाले शेयर से दूर रहना ठीक होता है। 


ROE रेश्यो 

ROE का फुल फॉर्म Return on Equity है। वास्तव में ROE रेश्यो का मतलब कंपनी एक शेयर में कितना लाभ दे रही है। यदि किसी शेयर का ROE 20 से ज्यादा हो, तो अच्छा माना जाता है।


डेब्ट टो इक्विटी रेश्यो (Debt to Equity Ratio)

कंपनी का टोटल कर्ज और टोटल हिस्सेदार का अनुपात होता है। यदि Debt to Equity Ratio एक (1) है तो इसका मतलब कंपनी में कर्ज 100% कर्ज है। जिस कंपनी का Debt to Equity Ratio एक से कम है, वह शेयर अच्छा होता है। Debt to Equity Ratio यदि 0.25 से कम है तो वह अच्छा है। 



डिविडेंट (Divident)

कुछ कंपनी अपना प्रॉफिट शेयर ख़रीदने वालों के साथ बांटती है। इस बटवारें में जो मिलता है, उसे डिविडेंट कहते है। डिविडेंट हर महीनें या साल मिल सकता है। 


डिविडेंट सभी कंपनी नहीं देती। कुछ कंपनी अपने प्रॉफिट को अपने पास रखती है। इस प्रॉफिट को कंपनी अपने अपने ग्रोथ में लगाती है। इससे शेयर की क़ीमत बढ़ती है। 


शरहोल्डिंग पैटर्न (Shareholding Pattern)

किसी भी कंपनी में 5 शेयर होल्डर होते है। इसमें मुख्यतः 3 चीज़ देखना होता है। प्रमोटर्स, फॉरेन इंस्टीटूशन्स और अदर डोमेस्टिक इंस्टीटूशन्स का शेयर कितना प्रतिशत है। ये 5 शेयर होल्डर:

  1. प्रमोटर्स 
  2. रिटेल 
  3. फॉरेन इंस्टीटूशन्स 
  4. अदर डोमेस्टिक इंस्टीटूशन्स 
  5. म्युचुअल फंड्स 

 

1. प्रमोटर्स: कंपनी के संस्थापक या मालिक  प्रमोटर्स कहते है। कंपनी के मालिक के पास कितना शेयर है? इसे प्रमोटर्स होल्डिंग कहते है। प्रमोटर्स होल्डर के पास जितना ज्यादा शेयर हो अच्छा माना जाता है। 50% या उससे अधिक हो तो बहुत अच्छा माना जाता है । 

 

 2. रिटेल: रिटेल मतलब कितना शेयर भारत के लोगों के पास है। शेयर मार्केट में कितना शेयर बेचा गया है। यह उतना जरुरी नहीं है। 


3. फॉरेन इंस्टीटूशन्स: यह देखना जरुरी होता है। फॉरेन इंस्टीटूशन्स के लोग प्रोफेशनल होते है। वह किसी भी शेयर को बहुत रिसर्च के बाद ही चुनते है। यह 15% से ज्यादा हो तो अच्छा माना जाता है। 

 

4. अदर डोमेस्टिक इंस्टीटूशन्स: यह देखना भी जरुरी होता है। इससे कंपनी पर भरोसा बढ़ता है। यह भी 15% से ज्यादा हो तो अच्छा माना जाता है। 


5. म्युचुअल फंड्स: यह देखना उतना जरुरी नहीं होता है।  


बैलेंस शीट (Balance sheet)

यहाँ से हमें सिर्फ दो चीज देखना होता है। यह कंपनी की फिनांशियल कंडिशन और मैनेजमेंट को बताती है। इसमें प्रॉफिट और नेट वर्थ  ग्राफ देखना होता है। यदि प्कंपनी की प्रॉफिट और ग्रोथ नियमित रूप से बढ़ रही है, तो यह अच्छा शेयर माना जाता है। यह कम हो तो ठीक है, लेकिन लगातार प्रॉफिट कर के आगे बढ़ना चाहिए।  


 

कॉम्पिटिटर

यदि आप छोटी कंपनी में इन्वेस्ट करने की सोच रहे हो, तो कॉम्पिटिटर देखना बहुत जरुरी होता है। यदि छोटी कंपनी का प्रतिद्वंदी बहुत बड़ा हो, तो शेयर ख़रीदने से बचे। क्यूंकि कोई भी बड़ी कंपनी छोटी कंपनी को दबा देती है।


 

फेस वैल्यू (Face Value)

कंपनी हमेशा अपनी फेस वैल्यू 1, 10 या 100 रखती है। इससे कंपनी को शेयर की गिनती करने में सुविधा होती है। क्यूंकि फेस वैल्यू और टोटल शेयर का गुना करने से कंपनी की शुरूआती क़ीमत का पता चलता है। यह इतना जरुरी नहीं होता है। 


अंतिम शब्द 

नेक्स्ट शेयर लेने से पहले ऊपर के 12 पॉइंट का एक चेक लिस्ट बना लें। चेक लिस्ट सभी पैरामीटर पर सही होने पर आप शेयर ले सकते है। इससे आपका लॉन्ग टर्म में काफी प्रॉफिट देखने को मिलेगा। यह 12 पॉइंट लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के लिए बेस्ट है। यही 12 पॉइंट को समझाने के लिए कोर्स बेचने वाले हजारों रूपए लेते है। 


यदि आपको किसी पॉइंट में अभी भी कन्फ्यूजन है, तो आप कमेंट में पूछ सकते है। कुछ उदाहरण के साथ समझाने का प्रयास करूँगा। यदि आर्टिकल से कुछ सीखा, तो कमेंट में थैंक्स जरूर लिखें। साथ ही हमें इंस्टाग्राम पर फॉलो करें। इंस्टाग्राम पर शार्ट में सिखाया जाता है। 

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